Monday 14 February 2022

चुनाव (choice)

           चुनाव (choice)


कौन कहता है कि हम 

हर बीतते पल के साथ मिट रहे हैं 

मुझे तो हर  बीतता पल बना रहा है 

हर घडी में कुछ चुन रही हूँ 

और यही चुनाव मुझे बनाता जा रहा है 

मैं चुनाव करती हूँ खुद को व्यक्त करने का

मेरा हर चुनाव मेरे व्यक्तित्व का आईना है 


मैं  क्या कहती हूँ ,कैसे कहती हूँ 

क्या करती हूँ कैसे करती हूँ 

कैसे लोगों में उठती बैठती हूँ 

क्या सुनती हूँ ,क्या बोलती हूँ 

कैसी तस्वीरें बनाती हूँ 

क्या गाती  हूँ 

क्या लिखती हूँ 

क्या पढ़ती हूँ 

कैसा खाती हूँ 

क्या बनाती  हूँ 

कैसा व्य्वहार  रखती हूँ 

कैसे जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करती हूँ 

सुख और दुःख में कैसी प्रतिक्रिया देती हूँ 


हर फिसलते पल के साथ मैं इन सब का चुनाव 

अपनी सोच और संस्कारों के मुताबिक करती हूँ 

हर पल मुझ में अनुभव जुड़ता जा रहा है 

जो ना सिर्फ मुझे पूरा कर रहा है 

अपितु  मुझे मेरे जीवन उद्देश्य की तरफ धकेल रहा है 


तो क्यों  न मैं  अपना हर चुनाव 

ईमानदारी और समझदारी से करूँ 

कि यही चुनाव  मेरा कर्मों का खाता बना रहा है 

और अगले  जन्म  तक मेरा साथ निभाएगा 





 

Monday 7 February 2022

साथी या बैसाखी

                साथी या बैसाखी 


प्रियतम आज तुमसे जुड़ जाऊंगी मैं 

पर सिर्फ इतना चाहती हूँ कि 

तुम मेरे साथी बनना बैसाखी नहीं 


प्रेम तो करना मुझसे 

पर बांध मत लेना खुद से 

क्योंकि   कैद में पंछी  रोते  हैं गाते  नहीं 

कैसा   भी दाना  डालो 

आज़ादी की प्यास  मन से जाती नहीं 

प्रियतम  तुम मेरे साथी बनना बैसाखी नहीं 


दिन रात निहारना मुझे 

और इस क्षणभंगुर शरीर के भीतर 

मुझ तक पहुँच जाना 

गुफ़्तगू  करना मेरे सपनो से 

और दोस्ती का रिश्ता निभाना 

मालिक और गुलाम की बात

 मुझे रास  आती नहीं 

प्रियतम  तुम मेरे साथी बनना बैसाखी नहीं 


इठलाऊँगी मैं भी 

जब एक फूल की तरह 

नज़ाकत से संभालोगे मुझे 

पर ध्यान रहे 

फूल की खुशबू  हर दिल तक पहुँचती है 

सिर्फ माली को आती नहीं 

प्रियतम  तुम मेरे साथी बनना बैसाखी नहीं 


रंग पैलेट


              रंग पैलेट 

हाँ ! रंगरेज़ हूँ मैं 
ज़िन्दगी के हर रंग को ओढ़ा है मैंने 
 
कैसी रंग बिरंगी भावनाओं से 
सजी है मेरी ज़िन्दगी 
कभी करती ज़िंदगी खुशहाल तो कभी उदास 
हर रंग की अपनी महिमा ,अपनी भूमिका  

कहीं छलकता है
 सुर्ख लाल रंग प्यार वाला 
तो कहीं चटक पीला उम्मीद वाला 
कहीं समृद्ध हरा खुशहाली वाला 
तो कहीं पवित्र श्वेत शुद्धता वाला 
कहीं आसमानी नीला स्थिरता वाला 
तो कहीं गेरुआ नारंगी उमंग वाला 

पर जब कभी फैलता 
रहस्यमयी  काला  उदासी वाला 
तो वीरान हो जाती ज़िन्दगी 
फिर मैं अपनी सकारात्मक सोच से चुनती हूँ 
कोई प्यारा रंग ईश्वरीय रंग पैलेट  से 
और ज़िंदगी में घोल  देती हूँ 
ताकि ज़िन्दगी फिर से मुस्कुराने लगे 

मेरे रंग पैलेट  में रंग कम तो हो सकते हैं 
पर वह  कभी खाली  नहीं रहता 
रंगरेज़ में हुनर होना चाहिए
मौजूदा रंगो  को मिला कर 
नए रंग  बनाने का 
और 
प्रभु को शुक्राना करने का 
जिसने उसका रंग पैलेट ख़ूबसूरती से  सजाया 
तो ज़िंदगी का इंद्रधनुष सदा ही 
अपनी छटा  बिखेरता रहता है 

Thursday 27 February 2020

           थोड़ा और चल लूँ 


सोचता हूँ , थोड़ा और चल लूँ
फिर में रुक जायूँगा

बस इतना हो जाये
फिर नहीं कमायूँगा
पर जाने क्यों ?
इतना कभी पूरा होता ही नहीं
चाहतों वाला हिस्सा कभी सोता ही नहीं
अच्छा घर और सैटल्ड  बच्चे
अभी आरज़ू है मेरी
तभी तो करता हूँ  काम
उसमें नहीं होने देता की देरी
आरज़ू पूरी करनी कितनी मुश्किल है
किस किस को समझायूँगा
सोचता हूँ , थोड़ा और चल लूँ
फिर में रुक जायूँगा


कोशिश सेहतमंद होने की
काम के साथ साथ चलती है
लेखिन दिल्ली की ज़हरीली हवा में भला
बिमारियाँ कब टलती  हैं
कभी इस सीमेंट के जंगल के बाहर
एक छोटा आशियाँ  बनायूँगा
सोचता हूँ , थोड़ा और चल लूँ
फिर में रुक जायूँगा


चाहत अभी मन में अंगड़ाई लेती है
अपनों के लिए कुछ खास  करने की
एक दिन इन सबको वर्ल्ड टूर कराऊंगा
सोचता हूँ , थोड़ा और चल लूँ
फिर में रुक जायूँगा


औसत 25000 दिनों की ज़िंदगी से
18000 दिन यूँही निकल गए
बचे हुए इन 7000 दिनों में
जाने क्या कर पायूँगा
सोचता हूँ , थोड़ा और चल लूँ
फिर में रुक जायूँगा


जानता हूँ मन की शांति ही
असल मंज़िल है मेरी
शिवानी ,सद्गुरु ,बुद्धा में
तभी तो आस्था  है मेरी
खुद से पूछता हूँ
क्या में भी कभी
इन सा हो पायूँगा
सोचता हूँ , थोड़ा और चल लूँ
फिर में रुक जायूँगा


जन्म ,परिवार, रिश्तेदारी और रुतबे में कुदरत
तूने सिर्फ अपनी चलाई
मैंने काठ जोड़ कर तेरा हुकम माना
सोचा इसी में होगी भलाई
पर इस अदद ज़िंदगी का एक हिस्सा
मैं अपने हिसाब से चलायूँगा
सोचता हूँ , थोड़ा और चल लूँ
फिर में रुक जायूँगा


जाने कैसे कहते हैं ?
 कि  वो अपनी ज़िंदगी अच्छी जी गया
कौन जाने चाहतों का कौन सा हिस्सा वो
मन ही मन में पी  गया
कहीं मैं  अपनी चाहत वाली ज़िंदगी जीने से पहले
तो नहीं मर जायूँगा


सोचता हूँ , थोड़ा और चल लूँ 
फिर में रुक जायूँगा 

नीरज चैकर
27 . 02 . 2020 























Monday 30 July 2018

स्कूल के वो दिन


स्कूल के वो दिन

क्या तुम्हें याद है
मॉर्निंग असेम्ब्ली से बंक मारना
और उस समय में 
अपना होम्वर्क पूरा करना
यूँ ही कभी सुबह सुबह ड्यूटी ले लेना
ताकि लम्बी असेम्ब्ली से जान बच जाए
ज़ीरो पिरीयड के ख़त्म होने पर अफ़सोस करना
और टीचर के ना आने की दुआएँ माँगना
हौले हौले बातें करना
और बार बार घड़ी देख कर
पिरीयड के ख़त्म होने का इंतज़ार करना
लंच का रीसेस से पहले ही ख़त्म हो जाना
और गरमी में पानी की लम्बी क़तार में लगना
कभी कभी टीचर के ना पढ़ाने पर
ज़ोरदार जशन मनाना
साल शुरू होने पर
कापी किताबों को ब्राउन पेपर से कवर करना
और ख़ूब मेहनत करने की नाकाम क़सम खाना
पेपर पास आने पर तेज़ ताप चढ़ जाना
और पढ़ाई बनाने वाले को गालियाँ निकालना
अपने जन्म दिन पर फ़्रेंड्ज़ को ट्रीट देना
और अपने पैदा होने पर इतराना
छुट्टी के बाद भाग कर बस में सीट मलकना
और घर आने पर ख़ुशी से झूम जाना
जब बच्चें थे तो बड़े होने का
इंतज़ार करते रहे
आज बड़े होकर जाना
कि बीते स्कूल के दिन ही
ज़िंदगी के बेहतरीन दिन थे
तुम ही कहो
सच है ना

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन ....







  
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन ....

यादों जे पिटारे को ज्यूँ ही खोला
कई मासूम और प्यारी समृतियाँ
मचल कर झोली में आ गिरी 
मैं उन्हें झटपट बटोरने लगी
कि कहीं कोई मेरे दामन से छूट ना जाए
यहीं तो मेरे जीवन के सबसे क़ीमती पल हैं
जिन्हें वक़्त की माला में पिरो के रखा है
तुम्हारा बचपन वो ख़ज़ाना है
जो हर पल मुझे अमीर कर जाता है
तुम दोनो का मुझसे घंटो बतियाना
और सवालों की झड़ी लगा देना
मुझे कैसे ऊर्जा से भर देता था
दिन भर की थकान
बस एक तुम्हारी मुस्कुराहट से
कम हो जाती थी
स्कूल का पूरे दिन का ब्योरा
बस एक ही साँस में
दे देते थे तुम दोनो
घंटों कहानियाँ सुनते थे मुझसे
और जब चिपक कर सोते थे मुझसे
तो मेरा चेहरा किस की तरफ़ होगा
इस बात पर बहस छिड़ जाती थी
अंशुम बहुत रोए थे तुम
जब तुम्हें कोट पैंट पहनाकर
पीछे पूँछ लगा कर स्कूल भेजा था
मैं भी क्या करती
जनवरी की कड़क सर्दी में भी भला कोई
बच्चे को हनुमान बनने को कहता है
ईशान जब एक दिन
मैं थक कर सो रही थी
और तुम्हारी मीठी आवाज़
जब मुझे नींद से ना जगा सकी
तो तुम कैसे घबरा कर बोले थे
लगता है मम्मी मर गई 😊
मैं तो सुन कर जी उठी थी उस पल
आज तुम दोनो बड़े हो गए
अब कोई झगड़ा नहीं इस बात पर
कि मेरे साथ कौन सोएगा
तुम्हारी लम्बी कहानियाँ
हाँ , हूँ में बदल गईं
पर सच कहूँ तो वो दिन बहुत अच्छे थे
काश कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन

अर्ध शतक

               अर्ध शतक 

इस बार का जन्मदिन कुछ ख़ास है 
ज़िंदगी का अर्ध शतक पूरा किया हैं मैंने 
पर इस बार ज़िंदगी को  देना होगा 
हर बीते पल का हिसाब 
कैसे कटे यह पचास साल 
कहीं बीते लमहों से कोई 
बेइंसाफ़ी तो नहीं की मैंने 

ज़िंदगी एक 
खुली किताब की तरह 
आँखों के सामने है 
हर सफ़े पर गढ़ें हैं 
कुछ रोते हँसते 
और 
मीठे कड़वे सच 

पलट कर देखती हूँ 
अपनी ग़लतियों को 
और ग्लानि से मुक्त होकर 
इन ग़लतियों को 
अनुभवों का नाम देती हूँ

अपनी छोटी छोटी उपलब्धियों पर
गर्व महसूस करती हूँ 
और कोशिश करती हूँ 
उस दूरी को नापने की 
जो आज तक मैंने तय की 

बहुत कुछ पाया और गँवाया 
बहुत कुछ सीखा और सिखाया 
बहुत कुछ नकारा और अपनाया 
और यूँही जीवन के कई वर्ष 
हाथ से रेत की तरह फिसल गए 

पलों को बाँध पाना उतना ही कठिन है 
जैसे रेत को मुट्ठी में समेटना 
बस इतना चाहती थी कि 
हर  बीतता लम्हा
पवित्र ओस की बूँद की तरह 
जीवन कमल के पत्ते पर चमचमाए 
नाकि दुखों के कीचड़ से मिल कर 
अपनी ख़ूबसूरती और अस्तित्व खो दे 
और ऐसा ही हुआ 

ज़िंदगी की लहरें 
जाने कितने ज्वार भाटे झेल गईं 
और मिट कर बार बार फिर बनी 
लहरों का सफ़र अब भी जारी है 
और अंतिम क्षणों तक चलता रहेगा 
हर बार किनारा दूर होगा 
और हर बार मैं उछल कर 
उस किनारे को छू लूँगी 
क्यूँकि हर लहर चाहे 
जितने हिचकोले खाए 
किनारा तो पा ही लेती है 
और एक दिन पहुँच जाती है 


अपने मुक़ाम तक